Udaas Shaam Shayari

शाम होते ही दिल उदास हो जाता है
सपनों के सिवा ना कुछ खास होता है
आपको तो बहुत याद करते हैं हम
यादों का लम्हा मेरे लिए कुछ खास होता है


Good Night Mehfil Shaam Shayari

कितनी जल्दी ये शाम आ गयी
गुड नाईट कहने की बात याद आ गयी
हम तो बैठे थे सितारों की महफ़िल में
चाँद को देखा तो आपकी याद आ गयी


Ye Shaam Shayari

Tanhai Jaam Shaam Shayari

शाम खाली है जाम खाली है
ज़िन्दगी यूँ गुज़रने वाली है
सब लूट लिया तुमने जानेजाँ मेरा
मैने तन्हाई मगर बचा ली है


Dehliz Shaam Shayari

भीगी हुई एक शाम की दहलीज़ पे बैठा हूँ
मैं दिल के सुलगने का सबब सोच रहा हूँ
दुनिया की तो आदत है बदल लेती है आंखें
में उसके बदलने का सबब सोच रहा हूँ


Thokar Suraj Shaam Shayari

शाम सूरज को ढलना सिखाती है
शमा परवाने को जलना सिखाती है
गिरने वाले को होती तो है तकलीफ
पर ठोकर इंसान को चलना सिखाती है


Khushbu Afsana Shaam Ki Shayari

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में


Shaam Shayari 2 Lines


पहले सागर से तो छलके मय-ए-गुलफाम का रंग
सुबह के रंग में ढल जाएगा खुद शाम का रंग


हुई शाम उनका ख़याल आ गया
वही ज़िंदगी का सवाल आ गया


कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाए


शाम से आँख में नमीं सी है
आज फिर आप की कमी सी है


साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले


कई ख्वाब मुस्कुराये सरे-शाम बेखुदी में
मेरे लब पे आ गया था तेरा नाम बेखुदी में


जिन्दगी की हर सुबह कुछ शर्ते लेकर आती हैं
और जिन्दगी की हर शाम कुछ तजुर्बे देकर जाती हैं


कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रह कर सँवर गए होते


हम अपनी शाम को जब नज़र-ए-जाम करते हैं
अदब से हमको सितारे सलाम करते है


Sham Ki Shayari


कभी कभी शाम ऐसे ढलती है जैसे घूंघट उतर रहा हो
तुम्हारे सीने से उठता धुआँ हमारे दिल से गुज़र रहा हो


हमने एक शाम चिरागो से सज़ा रखी है
शर्त लोगो ने हवाओं से लगा रखी है


शाम तक सुबह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं


तुम्हारी जुल्फ के साये में शाम कर लूँगा
सफ़र इस उम्र का पल में तमाम कर लूँगा


उधर इस्लाम ख़तरे में, इधर है राम ख़तरे में
मगर मैं क्या करूँ मेरी सुब्हो-शाम ख़तरे में


उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है


तेरी निगाह उठे तो सुबह हो, पलके झुके तो शाम हो जाये
अगर तू मुस्कुरा भर दे तो कत्ले आम हो जाये


Sham Shayari In Hindi


कहाँ की शाम और कैसी सहर, जब तुम नही होते
तड़पता है ये दिल आठो पहर, जब तुम नही होते


एक दर्द छुपा हो सीने में तो मुस्कान अधूरी लगती है
जाने क्यों बिन तेरे मुझको हर शाम अधूरी लगती है


शाम ढले ये सोच के बैठे हम तेरी तस्वीर के पास
सारी ग़ज़लें बैठी होंगी अपने-अपने मीर के पास


ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौर-ऐ-जाम हो जाए


शाम, उदासी, ख़ामोशी, कुछ कंकर, तालाब और मैं
हर शब पकड़े जाते हैं, गहरी नींद, क़िताब और मैं


दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए
याद-ए-जानाँ से कोई शाम न ख़ाली जाए


और बस क्या कमी थी शाम में तेरे बगैर
शाम खुद को ढूढ़ती थी शाम में तेरे बगैर


Sham Shayari


शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो


हिकायत-ए-ख़लिश-ए-जान-ए-बेक़रार न पूछ
शुमार-ए-शाम-ओ-सहर ऐ निगाह-ए-यार न पूछ


आ गले लग जा हमारे तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म
रौशनी के नाम पर धोखे बहुत खाते हैं हम


गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं


वही ख़्वाब ख़्वाब हैं रास्ते वही इंतज़ार सी शाम है
ये सफर है मेरे इश्क़ का, न दयार है न क़याम है


कोई लश्कर है के बढ़ते हुए ग़म आते हैं
शाम के साये बहुत तेज़ क़दम आते हैं


हम भी इक शाम बहुत उलझे हुए थे ख़ुद में
एक शाम उसको भी हालात ने मोहलत नहीं दी


याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल


वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे


शाम महके तेरे तसव्वुर से
शाम के बाद फिर सहर महके


अब तो चुप-चाप शाम आती है
पहले चिड़ियों के शोर होते थे


दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों


शाम से उन के तसव्वुर का नशा था इतना
नींद आई है तो आँखों ने बुरा माना है


कँपकँपाती शाम ने, कल माँग ली चादर मेरी
और जाते-जाते, जाड़े को इशारा कर दिया


जिसमें न चमकते हों मोहब्बत के सितारे
वो शाम अगर है तो मेरी शाम नहीं है


शाम पर शायरी


बस एक शाम का हर शाम इंतिज़ार रहा
मगर वो शाम किसी शाम भी नहीं आई


उसने पूछा कि कौनसा तोहफा है मनपसंद
मैंने कहा वो शाम जो अब तक उधार है


ये उदास शाम और तेरी ज़ालिम याद
खुदा खैर करे अभी तो रात बाकि है


वो रोज़ देखता है डूबते हुए सूरज को "फ़राज़"
काश मैं भी किसी शाम का मँज़र होता


मुद्दत से एक रात भी अपनी नहीं हुई
हर शाम कोई आया उठा ले गया मुझे


शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास 
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं


शायर कहकर बदनाम ना करना मुझे दोस्तो
मै तो रोज शाम को दिनभर का हिसाब लिखता हूं


भीगी हुई इक शाम की दहलीज़ पे बैठे
हम दिल के सुलगने का सबब सोच रहे हैं


कुछ और तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म सही जामी
कुछ और अपने चराग़ों की लौ बढ़ा दूँगा


मैं तमाम शब का थका हुआ,वो तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर,उसके साँथ शाम गुज़ार लूँ


सुना कि अब भी सर-ए-शाम वो जलाते हैं
उदासियों के दिये मुंतज़िर निगाहों में


ये शाम और उस पर तेरी यादों की हलावत
इक जाम में दो शै का नशा ढूंढ रहा हूँ


तुम आओ तो पंख लगा कर उड़ जाए ये शाम
मीलों लम्बी रात सिमट कर पल दो पल हो जाए


होती है शाम आँख से आँसू रवाँ हुए
ये वक़्त क़ैदियों की रिहाई का वक़्त है


ख़्वाबों के पंछी कब तक शोर करेंगे पलकों पर
शाम ढलेगी और सन्नाटा शाखों पर हो जाएगा


हुई जो शाम तो अपना लिबास पहना कर
शफ़क़ को जैसे दम-ए-इंतिज़ार भेजा है


हमारे घर के क़रीब एक झील होती थी
और उस में शाम को सूरज नहाया करता था


शाम-ए-ग़म हम पे ये बात रौशन हुई
सोज़-ए-दिल चाहिये आदमी के लिये


आप ही होगा उसे शाम का एहसास क़मर
चढ़ रहा है अभी सुरज इसे ढल जाने दो


मुझे उस सहर की हो क्या ख़ुशी जो हो जुल्मतों में घिरी हुई
मिरी शाम-ए-ग़म को जो लूट ले मुझ उस शहर की तलाश है


वो यार है जो ख़ुश्बू की तरह जिसकी ज़ुबा उर्दू की तरह
मेरी शाम-ओ-रात मेरी कायनात वो यार मेरा सैयाँ सैयाँ


दिल सा मस्कन छोड़ के जाना इतना भी आसान नहीं
सुब्ह को रस्ता भूल गए तो शाम को वापस आओगे


गुल हुई जाती है अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के निकलेगी अभी, चश्म-ए-महताब से रात


खुशबू से भरी शाम में जुगनू के कलम से
इक नज़्म तेरे वास्ते लिक्खेंगे किसी दिन


किसी उर्से-दरवेश पे,अक़ीदत-मंदों की तरह
हर शाम मुझे तेरी यादें,घेर लेती हैं


एक आधा बुझा दिन मिलता है, एक आधी जली रात से
और वो कहते हैं, क्या खूबसूरत शाम है


शाम आती है तो ये सोच के डर जाता हूँ
आज की रात मेरे शहर पे भारी तो नहीं