Haq Shayari
हर एक नज़र को गुनाह का हक़ है
हर नूर को एक आह का हक़ है
हम भी एक दिल लेकर आये हे इस दुनिया में
हमें भी ये गुनाह करने का हक़ है
बड़ी मुश्किल में हूँ कैसे इज़हार करूँ
वो तो खुशबु है उसे कैसे गिरफ्तार करूँ
उसकी मोहब्बत पर मेरा हक़ नहीं लेकिन
दिल करता है आखिरी सांस तक उसका इंतज़ार करूँ
तरस गया था मैं उसके हुस्न के दीदार को
आज मुददतों बाद उसका दीदार हुआ
चुप थे वो और हमसे भी कुछ कहा न गया
दिल किया के थाम लूँ उसका हाथ
पर वो हक़ भी हमसे अब छिन गया
बर्दाश्त नहीं तुम्हे किसी और के साथ देखना
बात शक की नहीं हक़ की है
नाराज़ होना मुझसे हक़ है तेरा तक़रार में
और मनाना तुझको हक़ है मेरा प्यार में
Haq Jatana Shayari
हक़ हूँ में तेरा हक़ जताया कर
यूँ खफा होकर ना सताया कर
तुझे गुस्सा दिलाना भी एक साजिश है
तेरा रुठ कर
मुझ पर यूँ हक जताना प्यार सा लगता है
बीवी भी हक जताती है माँ भी हक जताती है
शादी के बाद आदमी कश्मीर हो जाता है
Shayari On Haq
तुम रुठ जाओ मुझसे हक है तुम्हारा
हम कैसे रुठे तुमसे रूह तक बसेरा है तुम्हारा
तेरे एहसास की ख़ुशबू से ही तो है सारा वजूद मेरा
मेरी रग रग में तेरी मोहब्बत, मेरी हर सांस पे हक़ तेरा
Koi Haq Nahi Shayari
तुम्हारी फ़िक्र है मुझे शक नहीं
तुम्हे कोई ओर देखे, ये किसी को हक़ नहीं
इश्क है तो शक कैसा
और नहीं है तो हक कैसा
यदि आप सही है तो आपको गुस्सा करने की जरूरत नहीं है
यदि आप गलत है तो अपको गुस्सा करने का हक नहीं है
ना जाने कौन मेरे हक़ में दुआ पढता है
डूबता भी हूँ तो समंदर उछाल देता है
दिनभर मुझे रुलाते हो बस ये बता दो किस हक से
तुम पत्थर दिल हो जाते हो बस ये बता दो किस हक से
नींद मुझे न आती है तो कैसे तुम सो जाते हो
मेरे जायज़ सवालों पे तुम चुप कैसे हो जाते हो
अभी तक समझ नहीं पाये तेरे इन फैसलो को ऐ खुदा
उसके हक़दार हम नहीं या हमारी दुआओ में दम नहीं
छीनता हो हक तुम्हारा जब कोई संसार में
आँख से आंसू नहीं शोला निकलना चाहिए
Haq Ki Ladai Shayari
हक की लड़ाई तन्हा ही लड़नी होती है
सैलाब उमड़ता है जीत जाने के बाद
न जाने किसने पढ़ी है मेरे हक़ में दुआ
आज तबियत में जरा आराम सा है
न मांझी, न हमसफर न हक में हवाए
कश्ती भी जर्जर है ये कैसा सफर है
चलो आज मांग लो हक़ से तुम हमे
देखते हैं हक़-ए-बन्दगी में कशिश कितनी है
मेरी नाराज़गी पर हक़ मेरे अहबाब का है बस
भला दुश्मन से भी कोई कभी नाराज़ होता है
जरुरी नहीं हमें डाँटने वाला हमसे नाराज ही हो
क्यूँकी डाँटने का हक़ सिर्फ प्यार करने वाले को ही होता है
जवानी की दुआ लड़कों को ना-हक़ लोग देते हैं
यही लड़के मिटाते हैं जवानी को जवाँ हो कर
Haq Par Shayari
बदल गए कुछ लोग आहिस्ता आहिस्ता
अब तो अपना भी हक बनता है
देख पगली मैं तेरे दिल का
हक़दार बनाना चाहता हु चौकीदार नहीं
तेरी मुहब्बत पर मेरा हक तो नही पर दिल चाहता है
आखरी सास तक तेरा इंतजार करू
भाई बोलने का हक़ मैंने सिर्फ दोस्तों को दिया है
वरना दुश्मन तो आज भी हमें बाप के नाम से पहचानते हैं
सिर्फ दिल का हकदार बनाया था तुम्हें
हद हो गई तुमने तो जान भी ले ली
बेजुबाँ जानवर भी
हक़ अदा कर देते हैं नमक का
जान हो तुम मेरी
अब इसे हक़ समझो या कब्जा
एक न जाने इंसान ही क्यों
इतना खुदगर्ज़ निकला
Haq Love Shayari
मेरे हक़ में खुशियों की दुआ करते हो
तुम खुद मेरे क्यों नही हो जाते
हक से अगर दो तो नफरत भी कबूल हमें
खैरात में तो हम तुम्हारी मोहब्बत भी न लें
तुझे हक़ है अपनी दुनिया में खुश रहने का
मेरा क्या मेरी तो दुनिया ही तुम हो
बेशक तुम्हें गुस्सा करने का हक है मुझ पर
पर नाराजगी में कहीं ये मत भूल जाना की
हम बहुत प्यार करते हैं तुमसे
वही हक़दार हैं किनारों के
जो बदल दें बहाव धारों के
चेहरा देखने का हक़ तो सिर्फ आपको दिया है
वरना लोग तो हमारी पायल की आवाज़
सुन कर सर झुका देते हैं
इज़हार-ए-इश्क करो उस से जो हक़दार हो इसका
बड़ी नायाब शय है ये इसे ज़ाया नहीं करते
उसकी ज़िद है तो उसे इश्क़ करने दीजिए
उसे हक़ है वो किस तरह तबाह होगा
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