गुनाह शायरी
खुद की मोहब्बत यहां फ़ना कौन करेगा
सभी नेक बन गए तो गुनाह कौन करेगा
ऐ खुदा सनम बेवफा को सलामत रखना
वरना रोज मेरी मौत की दुआ कौन करेगा
हर एक नज़र को गुनाह का हक़ है
हर नूर को एक आह का हक़ है
हम भी एक दिल लेकर आये हे इस दुनिया में
हमें भी ये गुनाह करने का हक़ है
न जिद है न हमे कोई गुरूर है
बस तुम्हे पाने का हमे सुरूर है
इश्क गुनाह है तो गलती की
अब सजा जो भी हो हमे मंजूर है
छोड़ दें कोशिशें इंसानों को पहचानने की
यहाँ जरूरतों के हिसाब से बदलते नकाब हैं
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर
हर शख्स कहता है जमाना बड़ा खराब हैं
गुनाह करके सजा से डरते हैं
ज़हर पी के दवा से डरते हैं
दुश्मनों के सितम का खौफ नहीं हमें
हम तो दोस्तों के खफा होने से डरते है
Gunaah Shayari
रोज गुनाह करता हूँ आप छुपा लेते हो अपनी रहमत से
मैं मजबूर हूं अपनी आदत से आप मशहूर हो अपनी रहमत से
लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसीबत सी हो गई
मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई
गुनाहे इश्क में इक वो दौर भी बहुत खास रहा
जब मेरा ना होकर भी तू मेरे बहुत पास रहा
रख ले 2-4 बोतल कफ़न में साथ बैठ कर पिया करेंगे
जब माँगे गा हिसाब गुनाहों का एक पेग उसे भी दे दिया करेंगे
चल सनम एक गुनाह करते हैं
तुम बाँहों में रहो हम मोहब्बत बेपनाह करते हैं
या अल्लाह हम सब पर अपनी रहमत कि बारिश कर दे
हमारे गुनाहों को माफ कर दे
प्यारे मैं उन गुनाहो के सदके जो तेरा दीदार करा दे
हर सजाए सर आखो पर मेरी जो मुझे तुमसे मिला दे
Gunah Shayari Hindi
हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है
हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है
ता-मत-गिन इश्क़ में किसने क्या गुनाह किया
इश्क़ इक नशा था जो तूने भी किया और मैंने भी किया
खता मत गिन इश्क़ में किसने क्या गुनाह किया
इश्क़ इक नशा था तूने भी किया और मैंने भी किया
कोई गुनाह नहीं है इश्क़ जो हम छुपांएगे
हमने चाहा है तुमको हम तो सबको बताएँ
सजा मिली उन गुनाहों की जो मेरे हरगिज न थे
मैं वो आँसू भी रोया जो खान साहब के नसीब में न थे
शिरकत गुनाह में भी रहे कुछ सवाब की
तौबा के साथ तोड़िए बोतल शराब की
आशिक हूँ तेरा भोले अब तेरी रजा बता दे
गुनाह हैं गर ये तो सजा बता दे
Gunah Par Shayari
गुनाह मेरे बड़े हैं तेरा दिल भी बड़ा
यकीन हैं माफ करेगा तभी हूँ दर पे खड़ा
हुस्न-ए-इज़हार ने रानाई अता की ग़म को
गुल अगर रंग न होता तो शरारा होता
दौर बदला तो मैं भी बदल सा गया
बे-गुनाही से अपनी मुकरने लगा
कर दे मेरे गुनाहों को माफ़ ए ख़ुदा
सुना है सोने के बाद कुछ लोगों की सुबह नही होती
सच है किसी सनम की इबादत गुनाह है
फिर भी हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
तेरी रहमत भी मोहताज़ है मेरे गुनाहों की
मेरे बिना तू भी खुदा हो नहीं सकता
इश्क़ इनायत है खुदा की
तो मैं गुनाहगार कैसे
ये मोहब्बत भी तो किसी गुनाह से कम नही
हर आशिक यहाँ सज़ा-याफ़्ता है
इश्क़ में वो भी एक वक़्त है जब
बे-गुनाही गुनाह है प्यारे
दुश्मनी हो जाती है मुफ्त में सैंकड़ों से
इंसान का बेहतरीन होना ही गुनाह है
छा जाती है चुप्पी अगर गुनाह अपने हों
बात दूजे की हो तो शोर बहुत होता है
तेरी ख्वाहिश कर ली तो कौन सा गुनाह किया
लोग तो इबादत में पूरी क़ायनात मांगते हैं खुदा से
गुनाह गिन के मैं क्यूँ अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं
अगर मोहब्बत गुनाह है तो गुनाहगार है खुदा
क्यूँ बनाया ये दिल किसी की रूह मै उतर जाने के लिए ?
क़ैदी हूँ पर मुल्जिम नहीं
मुझ पर मुहब्बत का इल्जाम है
वफ़ा के वास्ते मर मिटने चला था
बस मेरा इतना सा गुनाह है
Gunah Status
गुनाह ही समझते हैं लोग मोहब्बत को
चाहे रब से हो य़ा यार से
आज भी याद हैं मुझे
अपने वो तीन गुनाह सनम
पहला मोहब्बत कर ली
दूसरा तुमसे कर ली
तीसरा बेपनाह कर ली
इश्क़ अगर गुनाह है तो गुनाहगार है खुदा
जिसने बनाया दिल किसी पर आने के लिए
कोई किसी को पसन्द करे तो कोई गुनाह नहीं
इश्क और पसन्द दिल के दो अलग अलग एहसास है
तुम मिरी हो कर भी बेगाना ही पाओगी मुझे
मैं तुम्हारा हो के भी तुम में समा सकता नहीं
खुदगर्जो की बस्ती में एहसान भी गुनाह है
जिसे तैरना सिखाओ वही डुबाने को तैयार रहता है
कह दूंगा साफ़ हश्र में पूछेगा ग़र ख़ुदा
लाखों गुनाह किए तेरी रहमत के ज़ोर पर
हर कोई रखता है ख़बर ग़ैरों के गुनाहों की
अजब फितरत हैं कोई आइना नहीं रखता
समझे थे आस्तीन छुपा लेगी सब गुनाह
लेकिन ग़ज़ब हुआ कि सनम बोलने लगे
कैदी होना तकदीर कि बात है
कोइ कैदी बनने गुनाह-ए-इश्क किये जा रहा है
तो कोइ दिल का कैदखाना
खोलने को तैयार नही
कोई और गुनाह करवा दे मुझ से मेरे खुदा
मोहब्बत करना अब मेरे बस की बात नहीं
नागिन ही जानिए उसे दुनिया है जिस का नाम
लाख आस्तीं में पालिए डसती ज़रूर है
मुहब्बत करना गुनाह नहीं हैं
मुहब्बत में बेहक जाना गुनाह हैं
गुनाह किये होते तो मांफ भी हो जाते साहिब
ख़ता तो मुझसे ये हुई,कि उनसे इश्क़ हो गया
इश्क़ का व्रत तेरे नाम पे रख लिया हमने
अब किसी और को सोचना भी गुनाह लगता है
वो कौन हैं जिन्हें तौबा की मिल गई फ़ुर्सत
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है
कोई समझे तो एक बात कहूँ
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
मुद्दते हो गयी गुनाह करते करते
शर्म आती है अब दुआ करते हुए
ऐसा नहीं है कि हमें बातें बुरी नहीं लगती
एक बस तेरे लिये सारे गुनाह माफ़ है
गुनाह यार ए मोहब्बत हुआ है मुझसे
गुजारिश है कोई मेरे दिल को फांसी दे दो
बहाना कोई ना बनाओ तुम मुझसे खफा होने का
तुम्हें चाहने के अलावा कोई गुनाह नहीं है मेरा
देखा तो सब के सर पे गुनाहों का बोझ था
ख़ुश थे तमाम नेकियाँ दरिया में डाल कर
महसूस भी हो जाए तो होता नहीं बयाँ
नाज़ुक सा है जो फ़र्क़ गुनाह ओ सवाब में
कह दूँगा साफ़ हश्र में पूछेगा गर ख़ुदा
लाखों गुनह किए तिरी रहमत के ज़ोर पर
मन करता है कर लूं मैं कबूल गुनाह अपना
पर सजा जो मुझे उनके दिल में उम्र-कैद की मिले
कोई अच्छा सा बहाना
बनाना तुम मुझ से खफ़ा होने का
क्यूँकि तुझे चाहने के सिवा
मैने अब तक कोई गुनाह नहीं किया है
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
बढ़ी जब बेख़ुदी फिर कौन डरता है गुनाहों से
मेरे गुनाह ज़ियादा हैं या तेरी रहमत
करीम तू ही बता दे हिसाब कर के मुझे
हवस ने तोड़ दी बरसों की साधना मेरी
गुनाह क्या है ये जाना मगर गुनाह के बाद
किसी के दिल में बसना कोई गुनाह तो नहीं
गुनाह है ये जमाने के नजर में तो
क्या जमाने वाले कोई खुदा तो नहीं
तलब मौत की करना गुनाह है ज़माने में यारों
मरने का शौक है तो मुहब्बत क्यों नहीं करते
गुनाह आँखो ने किया
गिरफ्तार दिल हो गया है
वो रख ले कहीं अपने पास हमें कैद करके
काश कि हमसे कोई ऐसा गुनाह हो जाये
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
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